प्रिय रवीशजी
पता चला कि आप आहत है कि क्यू सोशल मीडियापे आलोचक मोदीजी को चौराहेपे जुते मारने कि बात कर रहे है जबकी मोदीजीके भाषण में जूते का ज़िक्र हि नहीं है. प्रधानमंत्री के लिए ऐसे अभद्र शब्द का उपयोग गलत हि है लेकिन मुझे नहीं लगता कि विरोधकभी 'ट्रोल' बनते जा रहे है.
आपकी बात सही है कि प्रधानमंत्री का बयान अलोकतांत्रिक और सामंती है. हलाकी सोशल मीडियाकि जुतेवाली आलोचना का उगम भी वहींपे है. जहाँ प्रधानमंत्रीजी खुदको चौकीदार कहते है और चौराहे पे सजा देने कि बात करते है.
पता चला कि आप आहत है कि क्यू सोशल मीडियापे आलोचक मोदीजी को चौराहेपे जुते मारने कि बात कर रहे है जबकी मोदीजीके भाषण में जूते का ज़िक्र हि नहीं है. प्रधानमंत्री के लिए ऐसे अभद्र शब्द का उपयोग गलत हि है लेकिन मुझे नहीं लगता कि विरोधकभी 'ट्रोल' बनते जा रहे है.
आपकी बात सही है कि प्रधानमंत्री का बयान अलोकतांत्रिक और सामंती है. हलाकी सोशल मीडियाकि जुतेवाली आलोचना का उगम भी वहींपे है. जहाँ प्रधानमंत्रीजी खुदको चौकीदार कहते है और चौराहे पे सजा देने कि बात करते है.
उनकी अभद्र और हिंसक राजनैतिक
भाषाकि बडी लंबी लिस्ट है. जैसेकी मुझे फांसी दे दो..., मुझे थप्पड मार
दो..., मुझे लात मार दो..., मुझे गोली मार दो..., मुझे जिंदा जलादो..., इ.
इ. इ.
हां, ये सभी हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री के हि पिछले अढाई सालके वक्तव्य है. भला चौराहे पे खडा करके और क्या सजा हो सकती है ? उनकीहि लिस्ट कि कोईभी सजा दिजिये या जुते मारिये, क्या फरक पडता है? उनकी अपनी लिस्ट में शायद 'जुते मारने' का बयान ना हो, लेकिन क्या इसे शॉर्ट पब्लीक मेमरीपे छोडना उचित नहीं होगा?
आलोचना का स्तर सामंती है या अलोकतांत्रिक है ये भी सही हो सकता है लेकिन उनकी भाषास्तर का इतिहास कुछ ऐसा रहा है कि जो बोया है वही तो फल पा रहे है ना?
हां, ये सभी हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री के हि पिछले अढाई सालके वक्तव्य है. भला चौराहे पे खडा करके और क्या सजा हो सकती है ? उनकीहि लिस्ट कि कोईभी सजा दिजिये या जुते मारिये, क्या फरक पडता है? उनकी अपनी लिस्ट में शायद 'जुते मारने' का बयान ना हो, लेकिन क्या इसे शॉर्ट पब्लीक मेमरीपे छोडना उचित नहीं होगा?
आलोचना का स्तर सामंती है या अलोकतांत्रिक है ये भी सही हो सकता है लेकिन उनकी भाषास्तर का इतिहास कुछ ऐसा रहा है कि जो बोया है वही तो फल पा रहे है ना?
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